जंगल के पेड़ – उजागर दुबे

हो भुला, हम तो तेरे जंगल के पेड़
रहते चुपचाप ,
हँसते चुपचाप,
बढ़ते चुपचाप,
हो भुला, हम तो तेरे जंगल के पेड़
बढ़ते चुपचाप
रहते चुपचाप
कटते चुपचाप ।

ज्योतिर्गमय

अन्धकार और प्रकाश मानव जीवन के दो ऐसे पहलू हैं जो बार बार, विभिन्न रूपों में प्रस्तुत होते रहते हैं. यथार्थ और वास्तविकताओं के दृष्टिकोण बदल जाते हैं जब मानव दृष्टि अन्धकार से प्रकाश में आती है. मात्र अन्धकार ही नहीं, छायाओं से भी अनगिनत रूप विरूप हो जाते हैं , रंग और आकृतियाँ बदल जातीं हैं. पर मानव स्वभाव कुछ ऐसा है कि यह कतई आवश्यक नहीं कि उसे प्रकाश और सम्यक प्रकाश में दिखने वाले यथार्थ और वास्तविकता में ही रूचि हो. अपितु, सामान्यतः तो मानव मन आधे सच और काल्पनिक रंगों से बनी वास्तविकता में ही उलझा रहता है.